आइये मित्रो जानते है माता संतोषी की अनेक लीलाओ में से एक ऐसी लीला के बारे में जिसके माध्यम से माता संतोषी ने अपने परम भक्त स्वर्गीय श्री नरसिंह लाल वोरा जी महाराज के जीवन में घटित घटनाओ के माध्यम से अपने मंदिर का निर्माण कराया और साथ ही अपनी प्रेरणाओं से अपने इस भक्त को अपने प्रचार का माध्यम बनाया…
मित्रो , जैसा की हम सभी जानते है, की महाशक्ति ने अन्नंत काल से ही हर युग में , अपने भिन्न भिन्न रूप में प्रस्तुत होकर हमेशा से ही मानवो का उद्धार व् कल्याण किया है , ठीक इसी प्रकार उसी महाशक्ति का इक स्वरूप जिसने अपने अवतरण के लिए , श्री गणेश के पुत्र शुभ और लाभ को अपना माध्यम बनाया , और जगत के कल्याण के लिए एक कन्या के रूप में अवतार लिया , जिसे आज हम सभी श्री गणेश की पुत्री के रूप में भी जानते है जिसने आगे चल कर देवी संतोषी के नाम से जगत में अपने चमत्कारों के माध्यम से प्रसिद्धि पाई , …
ఓం శ్రీ సంతోషి మహామయ గజనందం దాయిని శుక్రవారం ప్రియమైన దేవత నారాయణి నామోస్తుట్టే!
జై మా సంతోషియే దేవి నమో నమ
శ్రీ సంతోషి దేవవాయ్ నమ
ఓం శ్రీ గజదేవోపుత్ర నమ
ఓం సర్వివర్నార్నే దేవిభూత నమ:
ఓం సంతోషి మహాదేవ నమ
ఓం సర్వకం ప్రదప్రద నమ
ఓం లలితయే నమ
ॐ శ్రీ హ్రీమ్ క్లీన్ శ్రీ మహా సంతోషి నామ్:
दोहा
अन धन से पूर्ण करो मेरे मां घर बार
मै अज्ञानी कैसे मां करू तेरा सत्कार
भक्तो के मन मे वास करो हे संतोषी मात
मेरी जीवन रैन को करदो मात प्रभात
शिव के प्रसाद गणपति सुदाता
कार्तिकेय है जिनके भ्राता
सकलकाज में प्रथम पूज्य जो
मेरा कारज सिद्ध करे वह
तेरा सहारा लेकर दाता
संतोषी का नाम मै गाता
जय जय हे संतोषी माता
सकल विश्व तेरा यश गाता
गणपति सुदा महा तू शक्ति
जनम जनम दे नीजपद भक्ति
शुक्रवार दिन तुमको भावे
गुड और चना भोग मां पवे
ऋद्धि सिद्धि तुम्हारी महतारी
क्षेम लाभ कि बहना प्यारी
हरि हर ब्रह्मा तुमको ध्यावे
नारद शरद तेरा यश गावे
कमल पुष्प पर माता सोहे
सौम्यरूप सब का मन मोहे
जिसने व्रत में खाई खटाई
उसके लिए प्रलय है आई
ममता क्षमा मात का गहना
मुझपर कुपित कभी नहीं होना
ह्रदय पुष्प मां तेरे अर्पण
आशा का टूटे नही दर्पण
आदि व्यादी का दुख है भारी
दूर करो इसको महतारी
औषधि बन मम रोग हरो मां
मुझ पर ममता कृपा करो मां
बिछड़े साथी मां तू मिला दे
रोते नयना आज हंसा दे
जलता वीरह ज्वाल में रमन
शांत करो मम त्रास और जलन
सकल देवता तुमको ध्यावे
शेष नाग तुम्हारा गुण गावे
हरि प्रिया कि तुम मनभावन
तुमसे स्नेह करे गंगा पवन
पिता मही सबकी हो भवानी
तब महिमा मै क्या गाऊ अज्ञानी
तेरी शरण मात मै आया
दर्शन दो मुझको महा मया
नमो नमो संतोषी मायी
तब इच्छा से पर्वत होय राइ
सोलह शुक्रवार का व्रत जो करता
मां का तेज सकल दुःख हारता
आज पुकारा तुमको मैया
डूब ना जावे मेरी नैया
आन खबर लो मात हमारी
तेरे दर का मै हूं भीकरी
बेगी हरो मम सकल त्रास को
चरणों में लेलो अब तो दास को
तेरा दरस लगे है प्यारा
तू ही नैया तू ही सहारा
मम अपराध क्षमा सब करीयो
वरदहस्त मम शीश पेधरियो
पूत कपूत तो होजाता
पर माता नही हुई कुमाता
क्रूर द्रष्टि से जग जल जाता
कृपा द्रष्टि से इच्छित फल पाता
जय आनंद मई मां सूख कारी
मंगल मई मात दुख हारी
नित उठ जो यह ज़ाप हैं करता
भवसागर से वह नर तरता
धरे धूप दीप मां के आगे
उसके सोए भाग्य भी जागे
अकाल मृत्यु उसको नही आती
जो जगाए मां कि शुब बती
प्राणों कि रक्षा मां करती
खाली झोलिया मां भरदेती
मां का चमत्कार अती सुंदर
मनहर भावन सुंदर मंदिर
चतुर भूजी मां दर्श दिखाना
सकल दुखो को मेरे मिटाना
कर त्रिशुल कृपाण विराजे
माला ओर कटोरा साजे
तरे व्रत मे विग्न जो करता
बिन आयु मृत्यु वह मरता
दास नरसिंह को तेरा सहारा
ध्यान धरो हे मात हमारा
यह संतोषी चालीसा जो गावे
यश वैभव सकल निधि पावे
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति से
विनय करे सत्कार
उसको अपना जान मां
दर्शन दो साकार
इती श्री संतोषी चालीसा
बोलो संतोषी माता कि जय