जानिये श्री संतोषी माता मंदिर हैदराबाद के बारे मे…
मूल लेख – पंडित श्री सतीश कुमार वोरा जी महाराज
कहानी रुप व सम्पादन – शंकर सिंह ठाकुर
आइये मित्रो जानते है माता संतोषी की अनेक लीलाओ में से एक ऐसी लीला के बारे में जिसके माध्यम से माता संतोषी ने अपने परम भक्त स्वर्गीय श्री नरसिंह लाल वोरा जी महाराज के जीवन में घटित घटनाओ के माध्यम से अपने मंदिर का निर्माण कराया और साथ ही अपनी प्रेरणाओं से अपने इस भक्त को अपने प्रचार का माध्यम बनाया…
मित्रो , जैसा की हम सभी जानते है, की महाशक्ति ने अन्नंत काल से ही हर युग में , अपने भिन्न भिन्न रूप में प्रस्तुत होकर हमेशा से ही मानवो का उद्धार व् कल्याण किया है , ठीक इसी प्रकार उसी महाशक्ति का इक स्वरूप जिसने अपने अवतरण के लिए , श्री गणेश के पुत्र शुभ और लाभ को अपना माध्यम बनाया , और जगत के कल्याण के लिए एक कन्या के रूप में अवतार लिया , जिसे आज हम सभी श्री गणेश की पुत्री के रूप में भी जानते है जिसने आगे चल कर देवी संतोषी के नाम से जगत में अपने चमत्कारों के माध्यम से प्रसिद्धि पाई , युग परिवर्तन में देवी संतोषी की एक अनन्य महिला भक्त हुई जिसने अपनी अटूट भक्ति से माता संतोषी को प्रसन्न किया और समय के साथ माता की भक्ति में अपने जीवन को समर्पित कर दिया , उसी महिला के जीवन की मार्मिक कहानी को आज हम संतोषी माता की व्रत कथा की के रूप में जानते है , मित्रो समय के साथ साथ माता की कई और लीलाये उभरी व उनके कई प्राकट्य रूप भी सामने आये , जिसने आगे चल कर कई भव्य मंदिरो का रूप धारण किया , ठीक इसी प्रकार देवी संतोषी का सबसे पहला प्राकट्य सन 1963 में जोधपुर राजस्थान के लाल सागर स्थान पर हुआ जहा माता संतोषी ने अपने परम भक्त श्री उदाराम सांखला जी को अपने साक्षात दर्शन का सौभाग्य दिया , और फिर समय के साथ माता का ये दिव्य धाम देवी के प्रगट संतोषी माता मंदिर के नाम से पुरे विश्व में सुप्रशिद्ध हुआ , पर माता संतोषी के कई ऐसे भक्त भी हुए जिन्होंने केवल माता संतोषी के दर्शन कर के ही अपने जीवन में कई बदलाव पाए , व् उनकी प्रेरणा से ही वे अपने जीवन को बदल पाए है , देवी संतोषी ने अपने कई भक्तो के मन में अपनी भक्ति की ज्योत जगाई है , व् कई भक्तो को अपने प्रचार का माध्यम भी बनाया है , जिनमे से एक ऐसे ही भक्त थे ,पंडित श्री – नरसिंह लाल वोरा जी महाराज जिन्हे माता संतोषी ने अपने आशीर्वाद के साथ अपना प्रेम भी दिया व अपने इस भक्त के मन में भक्ति ज्योत को जगाया…
ये बात उस समय की है जब माता संतोषी के विषय में कोई नहीं जानता था , लेकिन फिर भी उस समय लोग काफी मात्रा में संतोषी और धार्मिक स्वाभाव के हुआ करते थे , और एक ऐसे ही परिवार में नरसिंह लाल जी जन्म दिनांक 28 अप्रैल सन 1915 को पंडित श्री हेमकरन वोरा जी महाराज के चतुर्थ पुत्र के रूप में राजस्थान के भाँवरी गाँव जिला पाली में हुआ , और समय के साथ नरसिंह लाल जी बालवस्था में ही धार्मिक प्रवित्ति के होने लगे जिसके फल स्वरुप नरसिंह लाल जी प्रतिभा के धनि होने साथ साथ नौ वर्ष आयु में ही अपने माता पिता से आज्ञा लेकर मुंबई स्थित वालकेश्वर के काशिमठ में संस्कृत व् वेदो का ज्ञान प्राप्त करने के लिए चले गए जहा वे लगातार तीन वर्षो तक शिक्षा ग्रहण करते रहे , और फिर वहा से लौटने के बाद हैदराबाद को अपना कार्य क्षेत्र बनाया , और यही रहकर पंडित नरसिंह लाल जी यजमानो के यहाँ पूजा पाठ आदि का कार्य करने लगे तब तक वे बारह वर्ष के हो चुके थे और और इसी काम को करते हुए नरसिंह लाल जी हैदराबाद में ही बस गए , और कुछ समय के बाद उन्हें अपने एक परिचित के माध्यम से इक सरकारी नियंत्रण के शिव मंदिर में मुख्य पुजारी की भूमिका मिली जिसे उन्होंने अपनी आजीविका चलाने का माध्यम बनाया , और इस तरह समय अपनी गति से बीतता गया…..
समय की गति के साथ , नरसिंह लाल जी अब बाल अवस्था से युवा अवस्था में पहुंच चुके थे और वह समय था सन 1960 के दशक का जिसमे नरसिंह लाल जी को अपने पारिवारिक कार्य वस् अपने पैतृक गाँव भावरी जाने का अवसर मिला और राजस्थान जाकर उन्हें पता चला की जोधपुर के लाल सागर नाम की जगह में माता संतोषी का प्राकट्य स्वरुप उभरा है , तब नरसिंह लाल जी से रहा नहीं गया और वे अगले ही दिन माता संतोषी के दर्शन को निकल पड़े , और जैसे ही उन्होंने देवी के दर्शन किये तो उनका मन संतोष से भर गया , उसके बाद तो मानो नरसिंह लाल जी को लगा की उन्हे सब कुछ मिल गया , देवी के दर्शनों से लौट घर आकर उन्होंने देवी के मुख मंडल को कई बार अपनी आखे बंद कर याद किया , और माता संतोषी के दिव्य स्वरुप को अपने मन मंदिर में विराजित कर वे वापस हैदराबाद लौट आये , और यहाँ आकर वे अपने नित्य कार्यो में मगन माता की सेवा अपने ढंग से करने लगे , जिसके फल स्वरूप एक दिन माता संतोषी ने उनके स्वपन में आकर उन्हें अपने दर्शन दिए और साथ ही देवी संतोषी ने नरसिंह लाल जी को अपने पूजन और व्रत का विधान समझाया और अपने मंदिर निर्माण की प्रेरणा दी , इस दुर्लभ स्वपन के बाद नरसिंह लाल जी ने माता संतोषी को अपना प्रेरणा स्त्रोत माना व मंदिर निर्माण को देवी का आदेश मानकर कुछ यजमानो से याचना की और मंदिर की रूप रेखा तैयार करने में जुट गए…..नरसिंह लाल जी शिव मंदिर में ही विधि विधान से माता संतोषी की प्राण प्रतिष्ठा कर उनकी सेवा भक्ति में मगन होने लगे , और कुछ ही समय के बाद उस मंदिर में भक्तो का मेला लगने लगा और इसी भक्ति भाव में मगन नरसिंह लाल जी अपने वैवाहिक जीवन में आये , और अब इस भक्ति की राह में पंडित जी को उनकी जीवन संगनी श्री मति अम्बा देवी जी का भी साथ प्राप्त हुआ…
पर कहते है ना की जो भी लोग भक्ति के पथ पर चलते है उनकी रहो में मुश्किलें होना स्वाभाविक है , और यही नरसिंह लाल जी के साथ भी हुआ , मंदिर में भक्तो की प्रतिदिन भीड़ देख कुछ असामाजिक तत्वों को ये सब देखा ना गया और वे नरसिंह लाल जी को आये दिन परेशान और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगे , लेकिन नरसिंह लाल जी माता की भक्ति में मगन इन सब बातो पर जरा भी ध्यान ना देते , लेकिन हद तो तब हुई जब एक शुक्रवार के दिन उन्ही असामाजिक तत्वों ने उस शिव मंदिर पर अपना वर्चस्व जमाने की लिए नरसिंह लाल जी को मंदिर में सेवा करने से रोक दिया , और उन्हें मंदिर से निष्काषित कर दिया , इस घटना के बाद नरसिंह लाल जी दुखी मन से माता के स्वरुप को याद कर फुट फुट कर रोये और अपने निवास पर आकर दरवाजे को बंद कर लिया , नरसिंह लाल जी के साथ इस तरह का अन्नाय होता देख वह मौजूद सारे भक्तो ने उनके निवास पर जाकर उन्हें उनसे किवार खोलने को कहा पर भक्तो के कई बार पुकारने और किवार को खटखटाने के बाद भी जब पंडित नरसिंह लाल जी ने कोई उत्तर नहीं दिया तो सारे भक्तो को लगा की कही पंडित जी ने कोई गलत कदम तो नहीं उठा लिया , वही दूसरी ओर कमरे के अंदर से पंडित नरसिंह लाल जी सब सुन रहे थे सो उन्होंने किवार खोल दिए , और जैसे ही नरसिंह लाल जी ने बाहर देखा तो उनके सामने भक्तो की भीड थी , और तब पंडित श्री नरसिंह लाल जी ने सभी भक्तो को दुखी देख समझाते हुए कहा की आप सभी दुखी ना हो बहुत जल्द ही सब ठीक हो जाएगा…वही दूसरी ओर अपने भक्त की ये दशा देख माता संतोषी से रहा नहीं गया और वे उन्ही भक्तो में से इक महिला को अपना माध्यम बनाकर पंडित नरसिंह लाल जी के समक्ष आन खड़ी हुई , और अपने परम भक्त पंडित श्री नरसिंह लाल जी से कहा , की पंडित जी आप चिंता ना करे, मैं आपको अपनी सेवा में जल्द ही वापिस से ले लुंगी लेकिन उसके लिए आपको नौ माह का धीरज रखना होगा , देवी ने मुस्कुराते हुए कहा की तुम क्यों रोते मेरे भोले पुत्र ये सब तो मेरी ही लीला है , इतना कह माता जी ने नरसिंह लाल जी के सर पर अपना हाथ रखा और कहा मेरे भोले पुत्र घबराओ मत अभी तो ये शुरुआत है , और मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है , ( संतोषी सदा सुखी ) और इस प्रकार माता अपना आशीर्वाद देकर शांत हुई , इस घटना के बाद से ही नरसिंह लाल जी अपने घर पर ही माता की सेवा करने लगे , और समय अपनी गति से बीतने लगा …
इस घटना के बाद से पंडित श्री नरसिंह लाल जी के साथ माता संतोषी की कई लीलाये होने लगी , हुआ ये की कई भक्तो ने नरसिंह लाल जी के साथ मिल कर माता संतोषी के मंदिर के निर्माण हेतु हैदराबाद के इसामिया बाजार में इक भूमि पंडित श्री नरसिह लाल जी के नाम पर खरीदी और माता संतोषी का नाम लेकर भूमि पूजन कर माता के मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कर दिया , और इस तरह हैदराबाद के इसामिया बाजार में माता संतोषी के प्रथम धाम की नीव उनके भक्त पंडित श्री नरसिंह लाल जी और अन्य भक्तो के सहयोग से रखी गई , जिसकी साक्षी व् प्रेरणा स्वम माता संतोषी रही , मंदिर निर्माण का कार्य अपनी गति से चलता रहा और देखते ही देखते माता का ये भवन आधे से ज्यादा बन चुका था , और तभी माता की एक और लीला हुई , हुआ ये की नरसिंह लाल जी को एक अनजान पत्र प्राप्त हुआ जो की राजस्थान के जयपुर से आया था , पत्र को जैसे ही नरसिंह लाल जी ने पड़ा तो उसमे लिखा था की , पंडित जी आपने जो माता संतोषी की मूर्ति निर्माण का कार्य हमें दिया था वह पूर्ण हो गया है , पंडित नरसिंह लाल जी इतना पड़ते ही चकित हो गए , क्यूंकि उन्होंने कोई मूर्ति बनाने का आदेश नहीं दिया था पर फिर जब इस प्रकार का चमत्कार उनके आँखों के सामने हुआ तो वे इसे माता का ही चम्तकार मान कर उनकी जय जय कार करने लगे , और फिर वही मूर्ति राजस्थान जयपुर से मंगवा कर दिनांक 09 फरवरी सन 1981 बसंत पंचमी के शुभ दिवस पर माता की वही मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के साथ स्थापित की गई , पंडित श्री नरसिंह लाल जी ने ख़ुशी ख़ुशी माता का शृंगार किया और माता की प्रथम आरती की , जिसके बाद देवी संतोषी फिर उसी महिला भक्त को संवाद करने का माध्यम बनाया जिसके माध्यम से पहले भी माता ने पंडित जी को आश्वासन दिया था वही महिला भक्त माता के स्वरुप में पंडित जी सन्मुख आन खडी हुई और मुस्कुराते हुए कहा की पंडित जी याद है ना आज से नौ माह पहले मैंने आपको एक वचन दिया था , जिसके अनुसार आज आप उसी नौवे माह के आखरी दिन पर मेरी आरती कर रहे है , पंडित श्री नरसिंह लाल जी निरूत्तर कुछ ना बोल पाए तभी पंडित जी ने माता के आगे हाथ जोड़ कहा भगवती आपकी माया अपरम्पार है माँ , तब देवी ने कहा भोले पुत्र यही तो मेरी माया है जिसे कोई समझ नहीं पाया है , अब बताओ और कौन सी मन की कामना है जिसे मैं पूरा करू , तब पंडित श्री नरसिंह लाल जी ने कहा हे माता आपने तो मुझे सब दे दिया अब बस आजीवन आपकी सेवा भक्ति और आपके प्रचार में ही मेरा जीवन बीते यही कामना है मेरी , तब माता ने संतोषी सदा सुखी कहा और शांत हुई, मंदिर में मौजद सभी भक्त इस प्रकार माता का चमत्कार देख कर पंडित श्री नरसिंह लाल जी को उनका परम भक्त मानकर बड़े खुश हुए साथ ही नरसिंह लाल जी भी माता की इस महिमा पर गद गद हो उठे और माता का जयकार करने लगे , बीतते समय के साथ माता के इस दिव्य धाम पर माता संतोषी द्वारा कई अनेक लीलाये होती रही और समय अपनी गति से बीतने लगा….
भक्त श्री नरसिंह लाल जी मंदिर निर्माण के बाद दिन रात माता संतोषी की सेवा में मगन रहने लगे , और मंदिर में आने वाले सभी भक्तो को माता के विषय में व उनकी महिमाओ के विषय में बताया करते , उनके पूजन का विधान क्या है माता के व्रत कैसे किया जाते है व इन्ही सब तमाम प्रकार की भक्ति भाव की जानकरी वे तमाम भक्तो को दिया करते जिसके फल स्वरुप माता का ये धाम आज हैदराबाद का प्रथम संतोषी माता धाम बना जिसकी प्रशिद्धि पुरे विश्व में है , लोगो को माता की महिमा बताना और उनकी सेवा भक्ति का प्रचार करना जिसे पंडित श्री नरसिंह लाल वोरा जी ने आजीवन किया और इसी काम में अपना जीवन व्यतीत करते हुए दिनांक 14 सितम्बर सन 2000 में पंडित श्री नरसिंह लाल जी अपनी देह त्याग कर माता की सेवा में विलीन हो गये…
वर्तमान में आज उनके दोनों पुत्रो श्री शिव कुमार वोरा जी महाराज व् श्री सतीश कुमार वोरा जी महाराज द्वारा मंदिर का सारा कार्य भार संभाला जाता है , और अपने पिता की भाँती वे भी माता की सेवा व उनका प्रचार बड़ी ही भक्ति भाव से करते आ रहे है , माता के इस पावन धाम पर किसी प्रकार का कोई चंदा नहीं लिया जाता , और ना ही कोई चौकी यहाँ लगाईं जाती है , क्यूंकि भक्त श्री नरसिंह लाल जी भक्तो में ही माता का रूप देखते थे और यही भाव उनके पुत्रो के मन में भी समाहित है , इसलिए मंदिर में आने वाले सभी भक्तो को देवी के दर्शन आसानी से प्राप्त हो जाते है व् किसी को भी पूजा पाठ के लिए कोई मनाही नहीं है , माता के धाम पर प्रत्त्येक शुक्रवार विशेष पर भक्तो की भरी भीड़ उमड़ती है और साथ ही कई भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के बाद माता के इस धाम पर विधि विधानों से अपने व्रत का उद्यापन करवाते है , माता के धाम पर प्रत्त्येक सावन माह की पूर्णिमा रक्षा बंधन के शुभ मौके पर माता का जन्म उत्सव मनाया जाता है , जिसमे सभी भक्त बड़े ही हर्षो उल्लास से माता का गुणगान करते है , माता के धाम पर प्रत्त्येक नवरात्र में अनेको धार्मिक आयोजन किये जाते है , जिसमे माता संतोषी के तमाम भक्त बड चढ़ कर हिस्स्सा लेते है , और मन में संतोष का अनुभव कर देवी के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम करते हुए उनकी जय जय कार करते है.